अब दुआ मांगने से डरता हूँ,
कहीँ कमबख्त सच ना हो जाए |||

-8th of April, 2002
{ I was real happy that day...Why ??? You see, sometimes reasons don't really matter...The feeling does...}
ख्वाहिशें इंतज़ार कर लेंगी,
जब मिले वक़्त तभी जाना |||

-8th of August, 2007
बेशक हमारा दिल, हमारी जान लेकर जाइये,
पर कम से कम नाचीज़ पर इक शुक्रिया फरमाइये |
हम नहीं काबिल इनायत के, हमें मालूम है,
पर करते रहिए झूठे वादे, आइये ना आइये |
वह ना मिलें, ना बात करने को कभी तैयार हों,
एक तरफ़ा ही सही, पर इश्क करते जाइये |
दीवानगी लायी हमें एहसास के इस उफक तक,
आप कोशिश से सही, पर इतनी हद तक आइये
सब रंग तुम्हारे संग सखे,

तुम यौवन बन छाये मुझपे,
गाते मल्हारी राग सखे,
तुम सावन बन बरसे मग में,
' सिखलाया अनुराग सखे,
जीवन की तुम्ही उमंग सखे
सब रंग तुम्हारे संग सखे |

जीवन जब लगता रसविहीन,
भावों पर जब सूखापन हो,
पुष्पों से लेकर तुम पराग,
जाने कब बरसा जाते हो,
कर देते मुझको दंग सखे
सब रंग तुम्हारे संग सखे |

तुमने मेरा मन पाया है,
मेरा अंतरतम जाया है,
सुख या दुःख मात्र नहीं तुमने,
सम्पूर्ण मुझे अपनाया है,
तुम मेरा ही हो अंग सखे |
सब रंग तुम्हारे संग सखे |

-18th of May, 2007
{This one is for the Bestest Best Friend in the world...Love you Dear...Truly...Deeply...Madly...}
अब बरसों बरस जलेगी आग,

प्रणय-रात्रि में इस प्रकार,
थे दग्ध अधर करते पुकार,
खुद ढोते अपना अग्नि-भार,...
वह मिले रीत जाने को पर,
यूँ हुआ अचानक चमत्कार,
विस्फोट हुआ और ज्वलित हो उठे,
सभी अंग, हर एक भाग,
अब बरसों बरस जलेगी आग ...

दिनमान उगा और बीत गया,
चन्दा शीतलता रीत गया,
पल-छिन सारे वाचाल गए,
दिन गए, वर्ष विकराल गए,
सब ऋतुएँ और ऋतुराज गए,
कुछ कल लौटे कुछ आज गए,
पर अग्नि-ज्वार कम हो ना सका,
गा देखे कितने ‘मेघ-राग’,
अब बरसों बरस जलेगी आग…

यह प्रेम-अग्नि है मूढ़ मने,
यह अपना ईंधन स्वयं बने,
सन्त्रप्ति नहीं इसके वश में,
जलकर चाहे सब राख बने,
कितने निश्पाप ह्रदय इसमें,
सर्वस्व होम कर बैठे हैं,
कुछ जलने में सुख पाते हैं,
कुछ घबराते डर बैठे हैं,
बच पाया फिर भी कोई नहीं,
ना वह जो इससे भाग रहे,
ना वह जो अपनाते ‘विराग’
अब बरसों बरस जलेगी आग…

6th of August, 2006
{sitting in Aashram Express heading for Ahmedabad from Delhi...the time was around 09:15pm...what a solitary moment...what a mood it was...mmmmmmm...can't forget...}
वह सुबह का ख्वाब होना चाहिये था,...

खूब लगता था नज़ारा,
गोद में था सर तुम्हारा,
हाथ में था हाथ,
आँखें कर रही थीं बात,
गेसू मेरे कदमों पर टिके अलसा रहे थे,...
आँच थी रुख्सार पर,
आरिज भी थे कुछ सुर्ख,
साँसों की तपिश हर कफ़स पिघलाती हुई सी|||

मैं तुम्हारी उँगलियों को उँगलियों से छेड़ता,
कुछ खेलता सा,...
कान में यूँ फ़ुसफ़ुसा के,
जाने क्या- क्या कह रहा था |
और तुम हर बात मेरी सुन के अक्सर खिलखिला के हँस रही थी |
थी हवा में खु़शग़वारी,
मौसमों में नूर सा छाया हुआ था

यूँ ना जाने क्या हुआ,
मैंने कहा कुछ,
या कि कुछ तुमने सुना...
बस वक्त में ठहराव सा इक गया,...
आँख की गहराई कुछ इतनी बढ़ी, कि
दिल ही मेरा डूबने सा लग गया
बात करना अब तो मुमकिन ही कहाँ था...
आँख थी आँखों के इतने पास,
कि उस दूर से कुछ भी नज़र
तेरे सिवा आता नहीं था |

आरिजों में एक जुंबिश थी तुम्हारे,
प्यास हो बरसों की जैसे कोई,
जिसको होंठ मेरे नर्मियों से पी रहे थे;
आँख थी यूँ बंद गोया सारी रानाई को खुद में कैद रखना चाहती हो;
होंठ पाकर होंठ का एहसास,जैसे बात करना भूल बैठे;...
और हम दोनों उसी तनहाई में यूँ साथ बैठे |||


दिल की धड़कन यूँ बढ़ी मेरी, कि मेरी नींद टूटी,
ख्वाब था यह ???
ख्वाब ही होगा,
तभी इतना हसीं था |||

सुनते आए थे सुबह के ख्वाब बनते हैं हक़ीक़त
पर अभी तो रात आधी ही हुई है,...
फिर तो बस यह सोचते ही रात बीती, उम्र बीती...|||
चंद घड़ियाँ ही सही, पर
मुझको शायद और सोना चाहिये था...
ख्वाब जो इतना हसीं था,
वह सुबह का ख्वाब होना चाहिये था ।।।

20th of September, 2006
मानो तो भरोसा है, ना मानो तो शक है,
यह ज़िंदगी आज़ाब है, मरना मेरा हक है...|||

29th of March, 2007
इस वक़्त अगर जाँ से गुज़र जाएँ तो अच्छा,...
इतने कभी मरने के बहाने ना मिलेंगे |||

29th of March, 2007
मन आँच- आँच...
तन
काँच- काँच,
बन धड़कन- धड़कन
पिघल रहा...|||

22nd of March, 2007
{These lines just flowed out of my pen, absolutely without any effort, ...I really like them...and wonder whether I'll ever be able to give them a suitable continuation...been trying so hard, but all in vain...}
तुम्हारे नाम को मिसरा बना के बैठा हूँ,
क्या मेरे नाम से यह शेर मुकम्मल होगा???
तेज़ रफ्तन है ज़ीस्त, मन्ज़िलें भी पानी हैं...
साथ रहना भी है, चलना भी मुसलसल होगा...|||

20th of April, 2007
{किसी भी 'शेर की एक पंक्ति ' को
मिसरा कहा जाता है,
और मुकम्मल का मतलब होता है 'सम्पूर्ण', 'पूरा', Complete...
ज़ीस्त के मानी होते हैं 'ज़िन्दगी, 'जीवन', 'Life'...
और मुसलसल कहते हैं 'लगातार' को }

यह शेर हमें खासा पसंद गया | ना जाने क्यों मगर, बडे दिल से लिखा है हमने इसे| किसी का पता नहीं, हमारेदिल से पूछिए तो बेशक एक बुलंद दाद सुनायी देगी |
बीते आँसू, बीती आहें,
बीते शिकवे, दर्द, कराहें...
ना बीती यह रात,
बहुत लम्बी हो जैसे...|||

मिला जो उनका साथ,
तो फिर क्या बात...
कि उनकी आँखों-आँखों,
बीत गयी हर रात,
बहुत छोटी हो जैसे...|||

3rd of August, २००५
{बहुत नर्मी है इन शब्दों में...बहुत सादा-अंदाजी | शायद इसलिये यह पहले तो हमें ज़रा कम पसंद था, मगर अब, कुछ अच्छा सा लगने लगा है | }
प्यास है मेरी बड़ी,
सागर भी मेरे सामने...|||

1st of September, 2006
{Don't wanna tell why did I write this...Just that I was missing someone badly,...and someone else was seemingly there acting like an illusion...Okay Leave it...No comments}
उनकी बेशर्म निगाहें, किसी नश्तर की तरह,
दिल के इस पार से उस पार गुज़रती जाए |||
गोया ग़ुस्से में भी जादू सा असर हो कोई,
सूरतें रूठने वालों की संवरती जाएं |||

6th December, 2006
{wrote this while sitting in Neelaanchal Express,...going to Jagannath Puri...my first journey in AC Class}

शब्द से मैं आज फिर
निःशब्द का आह्वान करने जा रहा हूँ ,

अपने मन की पीर, उर की वेदना का,
इस सुवर्णिम पृष्ठ पर अवसान करने जा रहा हूँ ,
क्लिष्ट परिभाषाओं का कर त्याग
मैं अनुराग को आसान करने जा रहा हूँ ,
इस मधुर पल की मधुर सम्भावना को नमन कर प्रिय,
मैं तुम्हारी प्रीत का सम्मान करने जा रहा हूँ।।।

चलो भाई शुरू किया जाये ।।।