तुम्हारे नाम को मिसरा बना के बैठा हूँ,
क्या मेरे नाम से यह शेर मुकम्मल होगा???
तेज़ रफ्तन है ज़ीस्त, मन्ज़िलें भी पानी हैं...
साथ रहना भी है, चलना भी मुसलसल होगा...|||

20th of April, 2007
{किसी भी 'शेर की एक पंक्ति ' को
मिसरा कहा जाता है,
और मुकम्मल का मतलब होता है 'सम्पूर्ण', 'पूरा', Complete...
ज़ीस्त के मानी होते हैं 'ज़िन्दगी, 'जीवन', 'Life'...
और मुसलसल कहते हैं 'लगातार' को }

यह शेर हमें खासा पसंद गया | ना जाने क्यों मगर, बडे दिल से लिखा है हमने इसे| किसी का पता नहीं, हमारेदिल से पूछिए तो बेशक एक बुलंद दाद सुनायी देगी |
1 Response
  1. humein yaad aa gayi kisi ki...
    bahuk bareek nazm hai....
    bheetar tak chot kar gayi...

    mazaa aa gaya sahab.