सख्त मसरूफियत का आलम हैं,
काम इतना की काम आएँ कब ?
एक माशूक मयस्सर ना हुई,
मिल भी जाए तो दिल लगाएँ कब ?
लाख ऊबे हों इन गुनाहों से,
बाज़ आएँ तो बाज़ आएँ कब ?
खाज सारे बदन पे नाज़िर हैं,
अब जो चाहें भी तो नहाएँ कब ?
-27th of May, 2007
तुम सोच के देखो...

हम-तुम हों,
मौसम बारिश का,
और समुन्दर के साहिल पर
नज़रों तक तन्हाई हो |

और सोचो...

एक दरख्त वहीं पर,
साथ हमारे, उस बारिश में,
आधा-पूरा,
भीग रहा है |

फिर सोचो...

उस भीगे दरख़्त की,
किसी नर्म सी जवाँ शाख का,
लिए सहारा,
तुम हौले से झूल रही हो |

अब सोचो मत,...

कर पाओ तो बस
महसूस करो,
रुख्सारों को नर्मी से
छूता हाथ मेरा |

फिर सुनो,...

वह मद्धिम सी धड़कन,
जो मेरे दिल से उतर
तुम्हारे सीने पर,
दस्तक देती है |

और देखो...

मेरी बंद पलक से झरते,
बारिश की बूंदों से मिलते,
उनमें घुलते से,
मसर्रती अश्कों को |

अब कहो...

अगर अब भी बाक़ी हो,
कोई हसरत,
कोई आरज़ू,
ख़्वाब कोई...|||

-4th of January, 2007
{Aaaaaaaah...how much I long to live such a moment in my life...}
इक सपने भर नींद मिले,
और इक धड़कन भर जीवन |
एक क्षुधा भर अन्न मिले,
और इक तृष्णा भर सावन |
इक मात-पिता भर छत्र मिले,
और एक मित्र भर अपनापन |
इक अर्पण भर भक्ति मिले,
और इक सुरूप भर दर्शन |
इक अर्चन भर शब्द मिलें,
और इक स्वीकृति भर श्रुतिधन |
एक ह्रदय भर प्रीत मिले,
और इक पीड़ा भर आलिंगन |
इक नेहा भर नेह मिले,
इक मधु-बेला भर यौवन |
इक अंतस भर दीप मिलें,
और इक अंतर भर स्पंदन |
इक जय भर उत्साह मिले,
और एक कष्ट भर क्रन्दन |
इक संकट भर धैर्य मिले,
और इक इच्छा भर पूरन |
इक मुख भर तुलसी-पत्र मिलें,
इक घट भर गंगा-जल पावन |
इक अन्तिम-रथ भर अश्व मिलें,
और एक चिता भर चंदन |

देव ! करो स्वीकार प्रार्थना,
सुफ़ल बने निज-जीवन |||

-2nd of February, 2007