हर दुआ में मेरी असर होता,
काश मैं कोई पयम्बर होता ॥ 
ज़ुल्फ़ के साए तीरगी करते,
बे-ख़लल  नींद का सफर होता ॥ 
चंद मिसरात, और लतीफ़े कुछ,
दिन मसर्रत में यूँ बसर होता ॥ 


-16 August 2014

इक तबस्सुम से जो चल निकली थी,
वो भी दीदा- तरी पे आ पहुँची । 
सिलसिले वारियों ठहर जाओ,
बात फ़िर रुख़सती पे आ पहुँची ॥ 

-वाहियात 17th January 2014