बेइख़्तियार ज़िन्दगी,
बेरोज़गार हम,
बेनाम सी इक हस्ती,
बेदिल सा इक सनम |
बेसाख़्ता ख़याल तेरा,
बेतरह सितम,
बेवजह आरजू़एँ कुछ,
बेहिसाब ग़म |
-12th of November, 2007
अपनी साँसों से कोई सी दे मेरा चाक बदन,
नर्मी--लब से मिटा जाए कलेजे की चुभन |
देखे आंखों में मेरी यूँ की करार जाए,
खुशबुएँ इतनी बिखेरे कि सँवर जाए सुखन |
-1st of October, 2007
अब तो इस दिल को दिलासों से जिलाते रहिए,
वो जवाँ हो गए, बस खैर मनाते रहिए |
जान हैं वो,...दुरुस्त है, फिर भी,
दूरियाँ कीजिये या जान से जाते रहिए |
-30th of September, 2007
तंगी--दिल के हाल लिखने थे,
उम्र के माह--साल लिखने थे,
दिल के सारे ख़्याल लिखने थे,
अपने सारे मलाल लिखने थे,
लाजवाबी सवाल लिखने थे,
कितने सारे वबाल लिखने थे,
आप अपनी मिसाल लिखने थे,
शेर कुछ खस्ता-हाल लिखने थे,
पर मेरा फ़न ही मेरे साथ नहीं |
मेरे दीवान के सफहों में दबे,
जाने कितने ही मिसरे तनहा हैं,
वो मुक़म्मल जाने कब होंगे,...
कब खुदा मुझको वो हुनर देगा,...
कब मेरे दिल को मिल सकेगी ज़ुबाँ...|
-12th of December,2006
आज मौजू नहीं मिलता था कोई मिसरे का,
बस इसी सोच में यह शेर लिख दिया हमने |
-08th of February,2001
{I am very fond of this one.Somethings just can't get any better.This one is also just too perfect.Love this couplet.}

{अब मौजू अर्थात 'विषय' or 'Topic',
और मिसरा के मानी होते हैं 'किसी भी अश्-आर(शेर) की एक पंक्ति' i.e. 'One of the lines of any couplet'}
किस-किस का बुरा मानें,
किस-किस से अदावत लें,
हर शख्स हैं जब मुझसे,
कुछ-कुछ खफ़ा-खफ़ा सा |
-23rd of March,2001
खरामा-खरामा चले जा रहे थे,
किसी का तसव्वुर किये जा रहे थे |
तसव्वुर का सामाँ थे कुछ प्यारे लम्हे,
हमें ज़िन्दगी से हैं प्यारे जो लम्हे |
कभी उसकी भोली सी, मीठी सी बातें,
कभी उसकी ज़ुल्फ़ों की मदहोश रातें,
कभी उसका हँस पड़ना यूँ खिलखिलाकर,
की जैसे कोई माह बदली से झाँके,
कभी बेखता रूठ जाना हमीं से,
कभी कहना "हाँ ! इश्क हैं हमको तुमसे!"
कभी मेरे काँधे पे सर अपना रख के,
नम आँखों से किस्सा--ग़म भी सुनाना,
कभी गोद में मेरी रख के सर अपना,
मुझे बादशाह--खु़दाई बनाना,
कभी बोसा रूख्सार पर मेरे देकर,
तबीयत को गुलफ़ाम सा महका जाना,
कभी डाल कर बाँहें मेरे गले में,
मुझे देर तक एकटक टकते जाना |
ख्यालों-ख्यालों में हम जाने कैसे,
यूँ दीदार--जन्नत किये जा रहे थे |
-27th of January,2001
हमारे रकीबों की आदत है ऐसी,
हबीबों में हमको गिनाते हैं अक्सर |
हमारे रकीबों की किस्मत है ऐसी,
हबीबों में हमको वह पाते हैं अक्सर |
हमारे रकीबों की ग़ुरबत है ऐसी,
हबीबों को पा-पा के खोते हैं अक्सर |
हमारी रकीबों से कुरबत है ऐसी,
जिधर देख लें, उनको पाते हैं अक्सर |
-18th of January, 2006
उसका होना ?...यह इक हकीकत है,
उसको पा लेना ?...यह फ़साना है |
-18th of January,2006
जब शो़खि़-ए-गुल उनकी निगाहों में मिले,
फिर क्या करें बहार जो राहों में मिले |
सुकून-ए-जाँ के फ़क़त दो ही ठिकाने पाए,
यह उनके पास, या बस माँ की पनाहों में मिले |
खुशी-खुशी में ही मर जाएँ अगर ऐसा हो,
हमारा दर्द कभी उनकी कराहों में मिले |
-07th of February, 2006
मुझे मालूम है वह ख़्वाब है,
फिर भी जाने क्यूँ,
मैं जब भी सोचता हूँ उसको, अपने साथ पाता हूँ |
मुझे हर साँस उसकी गाल पर से छू के जाती हें,
मैं उसकी धड़कनें सुन सकता हूँ अपने ही सीने पर,
मैं उसकी नर्म लंबी उंगलियों को चूम सकता हूँ,
मुझे उसके बदन की तपिश भी महसूस होती हें,
मैं उसके पैरहन की सिलवटें सब देख सकता हूँ,
मैं उसकी आंख के वह लाल डोरे गिन भी सकता हूँ,
घनेरे गेसुओं की खुशबुओं में खो भी सकता हूँ,
मैं उसकी गोद में सर अपना रख के सो भी सकता हूँ,
मैं सारे ख़्वाब अपने, साथ उसके बाँट सकता हूँ,
जगें जब दर्द तो काँधे पे उसके रो भी सकता हूँ,
मैं उसको देख सकता हूँ,
मैं उसको सुन भी सकता हूँ,
मैं उसको छू भी सकता हूँ,
मगर फिर भी ना जाने क्यूँ...
...मैं उसको पा नहीं सकता,
ख़लिश जो हर घड़ी,हर वक़्त
मेरे दिल में रहती है,
उसे कम कर नहीं सकता,
वह मेरी हो नहीं सकती,
मैं उसका हो नहीं सकता...|||
-31st of January, 2006
इस जहान--फानी से,कूच बहुत आसाँ है ,
खुद को कोसते रहिए,आप मर ही जाएँगे |
-13th of December,2000
{सात साल हो चले अब | शुरुआत बेहद बचकानी ही थी | शायद यही उसका मज़ा भी था | मालूम नहीं तब से लेकर अब तक हमने कितनी तरक्की की है,...की भी है की नहीं | पर इतना जानते हैं, की पहला कदम हमेशा आपके साथ रहता है, अपको हौसला देता है | आज भी याद है वो दिन हमें| बहुत मज़ा आया था, जब पहली बार कुछ अपना लिख लिया, भले ही वो एक तुक्का ही था | यह भी पता नहीं की हमने यह शेर लिखा क्यों, मगर अब जैसा भी है,'मेरा' है |}
सख्त मसरूफियत का आलम हैं,
काम इतना की काम आएँ कब ?
एक माशूक मयस्सर ना हुई,
मिल भी जाए तो दिल लगाएँ कब ?
लाख ऊबे हों इन गुनाहों से,
बाज़ आएँ तो बाज़ आएँ कब ?
खाज सारे बदन पे नाज़िर हैं,
अब जो चाहें भी तो नहाएँ कब ?
-27th of May, 2007
तुम सोच के देखो...

हम-तुम हों,
मौसम बारिश का,
और समुन्दर के साहिल पर
नज़रों तक तन्हाई हो |

और सोचो...

एक दरख्त वहीं पर,
साथ हमारे, उस बारिश में,
आधा-पूरा,
भीग रहा है |

फिर सोचो...

उस भीगे दरख़्त की,
किसी नर्म सी जवाँ शाख का,
लिए सहारा,
तुम हौले से झूल रही हो |

अब सोचो मत,...

कर पाओ तो बस
महसूस करो,
रुख्सारों को नर्मी से
छूता हाथ मेरा |

फिर सुनो,...

वह मद्धिम सी धड़कन,
जो मेरे दिल से उतर
तुम्हारे सीने पर,
दस्तक देती है |

और देखो...

मेरी बंद पलक से झरते,
बारिश की बूंदों से मिलते,
उनमें घुलते से,
मसर्रती अश्कों को |

अब कहो...

अगर अब भी बाक़ी हो,
कोई हसरत,
कोई आरज़ू,
ख़्वाब कोई...|||

-4th of January, 2007
{Aaaaaaaah...how much I long to live such a moment in my life...}
इक सपने भर नींद मिले,
और इक धड़कन भर जीवन |
एक क्षुधा भर अन्न मिले,
और इक तृष्णा भर सावन |
इक मात-पिता भर छत्र मिले,
और एक मित्र भर अपनापन |
इक अर्पण भर भक्ति मिले,
और इक सुरूप भर दर्शन |
इक अर्चन भर शब्द मिलें,
और इक स्वीकृति भर श्रुतिधन |
एक ह्रदय भर प्रीत मिले,
और इक पीड़ा भर आलिंगन |
इक नेहा भर नेह मिले,
इक मधु-बेला भर यौवन |
इक अंतस भर दीप मिलें,
और इक अंतर भर स्पंदन |
इक जय भर उत्साह मिले,
और एक कष्ट भर क्रन्दन |
इक संकट भर धैर्य मिले,
और इक इच्छा भर पूरन |
इक मुख भर तुलसी-पत्र मिलें,
इक घट भर गंगा-जल पावन |
इक अन्तिम-रथ भर अश्व मिलें,
और एक चिता भर चंदन |

देव ! करो स्वीकार प्रार्थना,
सुफ़ल बने निज-जीवन |||

-2nd of February, 2007
अब दुआ मांगने से डरता हूँ,
कहीँ कमबख्त सच ना हो जाए |||

-8th of April, 2002
{ I was real happy that day...Why ??? You see, sometimes reasons don't really matter...The feeling does...}
ख्वाहिशें इंतज़ार कर लेंगी,
जब मिले वक़्त तभी जाना |||

-8th of August, 2007