मुझे मालूम है वह ख़्वाब है,
फिर भी जाने क्यूँ,
मैं जब भी सोचता हूँ उसको, अपने साथ पाता हूँ |
मुझे हर साँस उसकी गाल पर से छू के जाती हें,
मैं उसकी धड़कनें सुन सकता हूँ अपने ही सीने पर,
मैं उसकी नर्म लंबी उंगलियों को चूम सकता हूँ,
मुझे उसके बदन की तपिश भी महसूस होती हें,
मैं उसके पैरहन की सिलवटें सब देख सकता हूँ,
मैं उसकी आंख के वह लाल डोरे गिन भी सकता हूँ,
घनेरे गेसुओं की खुशबुओं में खो भी सकता हूँ,
मैं उसकी गोद में सर अपना रख के सो भी सकता हूँ,
मैं सारे ख़्वाब अपने, साथ उसके बाँट सकता हूँ,
जगें जब दर्द तो काँधे पे उसके रो भी सकता हूँ,
मैं उसको देख सकता हूँ,
मैं उसको सुन भी सकता हूँ,
मैं उसको छू भी सकता हूँ,
मगर फिर भी ना जाने क्यूँ...
...मैं उसको पा नहीं सकता,
ख़लिश जो हर घड़ी,हर वक़्त
मेरे दिल में रहती है,
उसे कम कर नहीं सकता,
वह मेरी हो नहीं सकती,
मैं उसका हो नहीं सकता...|||
-31st of January, 2006
0 Responses