खरामा-खरामा चले जा रहे थे,
किसी का तसव्वुर किये जा रहे थे |
तसव्वुर का सामाँ थे कुछ प्यारे लम्हे,
हमें ज़िन्दगी से हैं प्यारे जो लम्हे |
कभी उसकी भोली सी, मीठी सी बातें,
कभी उसकी ज़ुल्फ़ों की मदहोश रातें,
कभी उसका हँस पड़ना यूँ खिलखिलाकर,
की जैसे कोई माह बदली से झाँके,
कभी बेखता रूठ जाना हमीं से,
कभी कहना "हाँ ! इश्क हैं हमको तुमसे!"
कभी मेरे काँधे पे सर अपना रख के,
नम आँखों से किस्सा--ग़म भी सुनाना,
कभी गोद में मेरी रख के सर अपना,
मुझे बादशाह--खु़दाई बनाना,
कभी बोसा रूख्सार पर मेरे देकर,
तबीयत को गुलफ़ाम सा महका जाना,
कभी डाल कर बाँहें मेरे गले में,
मुझे देर तक एकटक टकते जाना |
ख्यालों-ख्यालों में हम जाने कैसे,
यूँ दीदार--जन्नत किये जा रहे थे |
-27th of January,2001
0 Responses