तुम सोच के देखो...

हम-तुम हों,
मौसम बारिश का,
और समुन्दर के साहिल पर
नज़रों तक तन्हाई हो |

और सोचो...

एक दरख्त वहीं पर,
साथ हमारे, उस बारिश में,
आधा-पूरा,
भीग रहा है |

फिर सोचो...

उस भीगे दरख़्त की,
किसी नर्म सी जवाँ शाख का,
लिए सहारा,
तुम हौले से झूल रही हो |

अब सोचो मत,...

कर पाओ तो बस
महसूस करो,
रुख्सारों को नर्मी से
छूता हाथ मेरा |

फिर सुनो,...

वह मद्धिम सी धड़कन,
जो मेरे दिल से उतर
तुम्हारे सीने पर,
दस्तक देती है |

और देखो...

मेरी बंद पलक से झरते,
बारिश की बूंदों से मिलते,
उनमें घुलते से,
मसर्रती अश्कों को |

अब कहो...

अगर अब भी बाक़ी हो,
कोई हसरत,
कोई आरज़ू,
ख़्वाब कोई...|||

-4th of January, 2007
{Aaaaaaaah...how much I long to live such a moment in my life...}
2 Responses
  1. Tushar Gaur Says:

    wah kya lika hai .....ANDAAZ-E-BYAN bahut khoobsurat hai ....har kasak nikal gayi ...


    ek or bar wah wah....


  2. Anonymous Says:

    Maan gaye janaab, maan gaye. There are very few poems that sweep you off your feet and take you to their world by just words.

    Amazing work..