राज़ की बातें ज़रा सी, हम भी रखते हैं हुज़ूर,
डूबते सूरज को हम भी ख़ूब तकते हैं हुज़ूर |
मौसमों में जब कभी रंगीनियाँ पाते हैं हम,
बेखुदी में पाँव अपने भी थिरकते हैं हुज़ूर |
देखकर रानाइयाँ, हम पर भी चढ़ता है सुरूर,
हो भले अदना, मगर दिल हम भी रखते हैं हुज़ूर |
नर्म आरिज, गर्म साँसे, स्याह गेसू, इश्क हर सू,
हम भी तो रूमानियत को ही तरसते हैं हुज़ूर |
-12th October, 2003
6 Responses
  1. मौसमों में जब कभी रंगीनियाँ पाते हैं हम,
    बेखुदी में पाँव अपने भी थिरकते हैं हुज़ूर |
    zaroor thirakne bhi chahiyen..
    accha likha hai aapne..
    apne manobhav vyakt kar lete hain aap ba-khoobi.
    badhaai.


  2. Dhanyavaad. Aapki saraahna ke liye.

    Koshish rahegi aage bhi aapki ummeedon pe khara utarne ki.


  3. Sami Says:

    sir padhne mein nahi aa raha font!
    bahuuuu subak subak :(


  4. Arrey bhai,
    Make sure ki aap unicode enabled browser use kar rahe hain.


  5. meethi Says:

    I never knew that you wrote so well too... bahut khoob :)


  6. Shukriya...

    It's great to be appreciated by people who matter to you.

    Thanks again.