राज़ की बातें ज़रा सी, हम भी रखते हैं हुज़ूर,
डूबते सूरज को हम भी ख़ूब तकते हैं हुज़ूर |
मौसमों में जब कभी रंगीनियाँ पाते हैं हम,
बेखुदी में पाँव अपने भी थिरकते हैं हुज़ूर |
देखकर रानाइयाँ, हम पर भी चढ़ता है सुरूर,
हो भले अदना, मगर दिल हम भी रखते हैं हुज़ूर |
नर्म आरिज, गर्म साँसे, स्याह गेसू, इश्क हर सू,
हम भी तो रूमानियत को ही तरसते हैं हुज़ूर |
-12th October, 2003
डूबते सूरज को हम भी ख़ूब तकते हैं हुज़ूर |
मौसमों में जब कभी रंगीनियाँ पाते हैं हम,
बेखुदी में पाँव अपने भी थिरकते हैं हुज़ूर |
देखकर रानाइयाँ, हम पर भी चढ़ता है सुरूर,
हो भले अदना, मगर दिल हम भी रखते हैं हुज़ूर |
नर्म आरिज, गर्म साँसे, स्याह गेसू, इश्क हर सू,
हम भी तो रूमानियत को ही तरसते हैं हुज़ूर |
-12th October, 2003
मौसमों में जब कभी रंगीनियाँ पाते हैं हम,
बेखुदी में पाँव अपने भी थिरकते हैं हुज़ूर |
zaroor thirakne bhi chahiyen..
accha likha hai aapne..
apne manobhav vyakt kar lete hain aap ba-khoobi.
badhaai.
Dhanyavaad. Aapki saraahna ke liye.
Koshish rahegi aage bhi aapki ummeedon pe khara utarne ki.
sir padhne mein nahi aa raha font!
bahuuuu subak subak :(
Arrey bhai,
Make sure ki aap unicode enabled browser use kar rahe hain.
I never knew that you wrote so well too... bahut khoob :)
Shukriya...
It's great to be appreciated by people who matter to you.
Thanks again.