इक तबस्सुम से जो चल निकली थी,
वो भी दीदा- तरी पे आ पहुँची । 
सिलसिले वारियों ठहर जाओ,
बात फ़िर रुख़सती पे आ पहुँची ॥ 

-वाहियात 17th January 2014
0 Responses