ऐसी आतिश निगाह-ए-तर में उठी,
जिसको देखा, वो जला जाता है ।

हर भरम से भरा किये इसको,
पर कहाँ दिल का खला जाता है ।

एक कंधे की तलब थी जिसको,
चार कन्धों पे चला जाता है ।

एक यह जाँ, जो निकलती ही नहीं,
एक यह दिल जो गला जाता है ।

सख्त ठहरे हैं हिजाबों के रिवाज़,
अपना अंजाम टला जाता है ।

'वाहियात' जिस गली से भी गुज़रा,
शोर निकला, कि भला जाता है ।


-18 June 2013
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