दिन की आभा लुप्त हो चली,
निशा रूप अवतरित हुआ;
परिवर्तन का कर्मठ राही
थक कर पस्त हुआ...|
दिनकर अस्त हुआ ||
निशाचरों की सत्ता लौटी,
सन्नाटा उद्घोष हुआ;
एकाकी उलूक नीड़ से
उड़कर मस्त हुआ...|
दिनकर अस्त हुआ ||
रात ढले, माँ ने सर
गोदी में रख सहलाया, दुलराया ;
मेरी जीवन पूँजी
माँ का मधुकर हस्त हुआ...|
दिनकर अस्त हुआ ||
निशा रूप अवतरित हुआ;
परिवर्तन का कर्मठ राही
थक कर पस्त हुआ...|
दिनकर अस्त हुआ ||
निशाचरों की सत्ता लौटी,
सन्नाटा उद्घोष हुआ;
एकाकी उलूक नीड़ से
उड़कर मस्त हुआ...|
दिनकर अस्त हुआ ||
रात ढले, माँ ने सर
गोदी में रख सहलाया, दुलराया ;
मेरी जीवन पूँजी
माँ का मधुकर हस्त हुआ...|
दिनकर अस्त हुआ ||
बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
mazaa aa gaya ladke! waiting for more!
धन्यवाद... आप दोनों को.
@संगीता जी, आपकी शुभकामनाओं ने मेरा साहस बढ़ा दिया है. आशा है, आगे भी आपका आर्शीवाद मेरे साथ रहेगा. चिट्ठा जगत का हिस्सा बनाकर आपने मुझे जो सम्मान दिया है उसका मैं आभारी हूँ.