शब्द से मैं आज फिर
निःशब्द का आह्वान करने जा रहा हूँ ,
अपने मन की पीर, उर की वेदना का,
इस सुवर्णिम पृष्ठ पर अवसान करने जा रहा हूँ ,
क्लिष्ट परिभाषाओं का कर त्याग
मैं अनुराग को आसान करने जा रहा हूँ ,
इस मधुर पल की मधुर सम्भावना को नमन कर प्रिय,
मैं तुम्हारी प्रीत का सम्मान करने जा रहा हूँ।।।
रण-निमन्त्रण
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“घन और भस्म विमुक्त भानु- कृशानु-सम शोभित नये
अज्ञातवास समाप्त करके प्रकट पाण्डव हो गये ,
होकर कुमतिवश कौरवों ने प्रबलता की भ्रान्ति से
रण के विना देना न चाह...
8 years ago
This one's great...feelings flowing out of control I suppose.
None the less...tum itna achcha kab se likhne lage...pehle to tum aise na the...
looking forward to more...