मेरे मरने का उनको ग़म नहीं है !

ज़ुबाँ ख़ामोश है,
लब खुश्क हैं,
आँखें हैं पत्थर सी...

है बरहम ज़ुल्फ़,
टूटे ख़्वाब सी
सूरत है हजरत की...

और उस पर ख़ूब यह कहना
कि "यह मातम नहीं है"

मेरे मरने का उनको ग़म नहीं है?
-30th of December, 2004
{I think this is one of my good ones...feel good about having written it}
1 Response
  1. Anonymous Says:

    Aye shabaas...ye hui na baat...

    lage raho ...lage raho


    waise ye hum hain...