जब शो़खि़-ए-गुल उनकी निगाहों में मिले,
फिर क्या करें बहार जो राहों में मिले |
सुकून-ए-जाँ के फ़क़त दो ही ठिकाने पाए,
यह उनके पास, या बस माँ की पनाहों में मिले |
खुशी-खुशी में ही मर जाएँ अगर ऐसा हो,
हमारा दर्द कभी उनकी कराहों में मिले |
-07th of February, 2006
फिर क्या करें बहार जो राहों में मिले |
सुकून-ए-जाँ के फ़क़त दो ही ठिकाने पाए,
यह उनके पास, या बस माँ की पनाहों में मिले |
खुशी-खुशी में ही मर जाएँ अगर ऐसा हो,
हमारा दर्द कभी उनकी कराहों में मिले |
-07th of February, 2006